शिकायत
मुझे तुमसे शिकायत है
तुम क्यों हो ऐसे
जैसे तुम हो?
और क्यों नहीं हो ऐसे
जैसे मैं चाहता हूँ
कि तुम हो?
क्यों करते हो कुछ भी ऐसा
जो मुझे पसंद नहीं?
क्यों नहीं है तुम्हारी पसंद
जैसे है मेरी पसंद?
तुम हो ही क्यों
ये शिकायत है मेरी?
क्या ये काफी नहीं था
कि मैं हूँ?
मुझे इस दुनिया से शिकायत है
कि वो क्यों है ऐसी
जैसा मैं नहीं चाहता?
क्यों नहीं होती सिर्फ वे चीजें
जो मैं चाहता हूँ?
क्यों लगता है
इस दुनिया को मेरी जरुरत नहीं?
क्या चल सकती है ये दुनिया
मेरे बगैर, मेरे बिना?
No comments:
Post a Comment