Thursday, January 12, 2012

वह भगवान बनाती


प्लेटफोर्म पर थी वो
फिरती इधर-उधर
अपने हाथ फैलाये
भगवान के नाम पर मांगती.
उस भगवान के नाम पर
जिसने उसे बनाया
या फिर उस भगवान के नाम पर
जिसे उसने बनाया !
उसके चेहरे पर झुर्रियाँ थीं
या झुर्रियों में चेहरा !
जो भी हों, थे दोनों.
वरना बिना झुर्रियों के भी चेहरा होता है
तभी तो आइने बिकते हैं दुनिया में.
और बिना चेहरे के भी झुर्रियाँ होती हैं.
नहीं आता यकीन, तो झाँक लो
लोगों के दिलों में,
जहाँ अब चेहरे नहीं मिलते
मिलती हैं सिर्फ झुर्रियाँ.
मुझसे भी माँगा उसने
मैंने भी उसे एक रूपया दिया
और उस क्षण में उसका भगवान बन गया.
वह फिर बढ़ गई
अपने अगले भगवान कि तलाश में
फिरती इधर-उधर
अपने हाथ फैलाये
उसी प्लेटफोर्म पर
लोगों को भगवान बनाती.

Tuesday, January 3, 2012

बीता हुआ क्षण


अनमोल क्षण
तुम फिर बीत गए.
पता ही नहीं चला
तुम आये कब थे!
दस्तक सुनी थी मैंने.
सोचा भी
कि तुम ही होगे.
पलकें बिछा रखी थीं मैंने
तुम्हारी प्रतीक्षा में.
पुरातन कि ऊब छोड़
नूतन की आस थी.
ढेरों योजनाएं थीं
बस, तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी.
दस्तक जरूर सुनी थी मैंने
पर मैं व्यस्त था
योजनाएं बनाने में.
तुम ख़ास जो थे
अनुपम और अपूर्व.
कुछ करते हम दोनों
कुछ विशेष
जो होता तुम जैसा
नया, अनुपम, अपूर्व
और शानदार.
अब मैं तैयार हूँ
करने को वो सब कुछ.
द्वार भी खोल दिए हैं मैंने
तुम्हारे स्वागत में.
लेकिन यह क्या
तुम तो चलते ही चले?
क्या तुम रुक नहीं सकते
कुछ देर, मेरे पास?
तुम्हें नहीं पता
तुम संग बीता हूँ
मैं भी.
और रह गया
सिर्फ मैं.