Tuesday, January 3, 2012

बीता हुआ क्षण


अनमोल क्षण
तुम फिर बीत गए.
पता ही नहीं चला
तुम आये कब थे!
दस्तक सुनी थी मैंने.
सोचा भी
कि तुम ही होगे.
पलकें बिछा रखी थीं मैंने
तुम्हारी प्रतीक्षा में.
पुरातन कि ऊब छोड़
नूतन की आस थी.
ढेरों योजनाएं थीं
बस, तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी.
दस्तक जरूर सुनी थी मैंने
पर मैं व्यस्त था
योजनाएं बनाने में.
तुम ख़ास जो थे
अनुपम और अपूर्व.
कुछ करते हम दोनों
कुछ विशेष
जो होता तुम जैसा
नया, अनुपम, अपूर्व
और शानदार.
अब मैं तैयार हूँ
करने को वो सब कुछ.
द्वार भी खोल दिए हैं मैंने
तुम्हारे स्वागत में.
लेकिन यह क्या
तुम तो चलते ही चले?
क्या तुम रुक नहीं सकते
कुछ देर, मेरे पास?
तुम्हें नहीं पता
तुम संग बीता हूँ
मैं भी.
और रह गया
सिर्फ मैं.

1 comment:

  1. Nice poem coming just from heart as we go by the time, time too goes by. Really, after going ahead we imagine whether we lived the gone time or not. How much we push ourselves still there is more. Really , someone said, time and tide waits for none. Your poem has this meaning.

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