Tuesday, December 7, 2010

A Poem By Me


शिकायत

मुझे तुमसे शिकायत है
तुम क्यों हो ऐसे
जैसे तुम हो?
और क्यों नहीं हो ऐसे
जैसे मैं चाहता हूँ
कि तुम हो?

क्यों करते हो कुछ भी ऐसा
जो मुझे पसंद नहीं?
क्यों नहीं है तुम्हारी पसंद
जैसे है मेरी पसंद?

तुम हो ही क्यों
ये शिकायत है मेरी?
क्या ये काफी नहीं था
कि मैं हूँ?

मुझे इस दुनिया से शिकायत है
कि वो क्यों है ऐसी
जैसा मैं नहीं चाहता?
क्यों नहीं होती सिर्फ वे चीजें
जो मैं चाहता हूँ?

क्यों लगता है
इस दुनिया को मेरी जरुरत नहीं?
क्या चल सकती है ये दुनिया
मेरे बगैर, मेरे बिना?


मुझे खुद से शिकायत है
कि मैं क्यों हूँ वो
जो मैं नहीं चाहता?
क्यों करता हूँ वो
जो मैं नहीं चाहता?
और क्यों नहीं हूँ ऐसा
जैसा मैं चाहता हूँ?

या फिर......
मुझे यही नहीं पता
... कि मैं चाहता क्या हूँ???

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